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अनुभूति में मोहित कटारिया की रचनाएँ-

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संकलन में-
ज्योति पर्व– दीप जलाने वाले हैं

 

सत्य

कहीं देखता हूँ
तो खड़ा है गुज़रा हुआ कल
शक्ल बदल कर
एहसास होता है
कि ये हिस्सा मेरा ही है,
पर वो हिस्सा,
जो मैं पा न सका।

कहीं देखता हूँ
तो आने वाला कल नज़र आता है
चेहरा छिपा कर खड़ा
इच्छा उठती है,
कि देख सकूँ इस हिस्से को,
कभी ख़ुद से जुड़ा हुआ।

फिर देखता हूँ
तो मुस्कुराता हुआ सा आज नज़र आता है,
जहाँ 'मैं' 'हूँ'
और मैं ही सच हूँ
तब संतोष होता है
कि मैं मात्र एहसास नहीं हूँ,
स्वप्न नहीं हूँ,
मैं अस्तित्व हूँ!
साक्षात्!!
सत्य!!!

९ नवंबर २००३

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