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अनुभूति में मोहित कटारिया की रचनाएँ-

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ज्योति पर्व– दीप जलाने वाले हैं

 

परिवर्तन

बरसात की रात में
अकेला बैठा हुआ मैं,
चुन रहा हूँ
मिट्टी से उठती
सौंधी सौंधी खुशबू के कतरे,
और याद कर रहा हूँ
तेरे साथ बिताई हुई चंद बरसात की रातें।

कई साल हुए,
उन बरसातों को बरसे हुए,
और अभी तन्हाई में मुझे
यही एहसास हो रहा है
कि कितनी बदल गई हैं ये –
रातें, बरसातें
और मिट्टी से उठती ख़ुशबुएँ ।

बस एक तेरी नामौजूदगी के कारण!!

९ नवंबर २००३

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