अनुभूति में मोहित
कटारिया की रचनाएँ-
छंदमुक्त
में-
आग
आसमाँ
एकांत
दस्तक
प्यास
परिवर्तन
मंगलसूत्र
मशाल
सत्य
संकलन में-
ज्योति पर्व– दीप जलाने वाले हैं
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आग
इक आग सी है
जो सुलग रही है
अंदर ही अंदर
और जला रही है मुझे
रात और दिन
हर पल छिन।
वैसा ही है ज़िस्म मेरा अब भी
या शायद निखर गया हो
पर अंदर रुह तपती रहती है
इस पिंजरे में कैद।
दम घुट सा रहा है
मेरी रुह का
अब सब्र भी उसका
चुकने को ही है
तप चुकी है इतनी
कि चंद ही पलों में
ख़ुद आग हो जाने को है।
सोचता हूँ
कि अब जल ही जाए तो
इक ठंडी साँस मिले
मेरी रूह को शायद।
९ नवंबर २००३ |