अनुभूति में कुमार लव
की रचनाएँ-
क्रांति
नया सवेरा
बुरा जो देखन मैं चला
शून्यता
सुरक्षा
सेतु पर
हूँ शायद
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सुरक्षा
सफ़ेद चादर ओढे,
नींद में उतरते-
कुछ आवाजें सुन रहीं थी-
जाने क्या कह रही थी...
कुछ छूट रहा था पीछे,
कुछ हाथ से फिसल रहा था-
जाने क्या था वह...
सपना था शायद-
हाँ, सपना ही होगा।
पसीने में तर थी
कोई डर हावी था दिल पर,
पैर बाहर निकालते लग रहा था-
कोई खींच न ले मुझे-
जाने कहाँ...
१२ मई २००८ |