अनुभूति में कुमार लव
की रचनाएँ-
क्रांति
नया सवेरा
बुरा जो देखन मैं चला
शून्यता
सुरक्षा
सेतु पर
हूँ शायद
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बुरा जो देखन मैं चला
तुम्हें घेरे खड़े लोग
तुम्हारी कही हर बात को
सही कहते हैं, मानते हैं
पर मुझे तुम
इंसान नहीं, कोई मशीन लगते हो,
तुम्हारे होंठों से शब्द तो झर रहे हैं
पर तुम बात नहीं कर रहे,
कर रहे हो जुगाली
ये वही लोग है
जिन्हें दिखती है दिव्य ज्योति
क्योंकि ये हैं दिव्य,
जिन्हें दिखते हैं राजा के कपड़े
क्योंकि ये हैं निष्पाप,
जिन्हें नहीं दिखता कुछ भी बुरा
२४ जून २००७ |