अनुभूति में कुमार लव
की रचनाएँ-
क्रांति
नया सवेरा
बुरा जो देखन मैं चला
शून्यता
सुरक्षा
सेतु पर
हूँ शायद
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क्रांति?
सुबह का समय
अनिश्चितता से भरा,
सोने से पहले जैसा था
सब वैसा न रहा तो?
किसी कुस्वप्न से जागते हुए
खिड़की से बाहर देखा,
पीले फूलों से लदा पेड़
धुंध से ढँका था,
दिख नहीं रहा था
उठता हुआ
अनमना सा
सोचने लगा,
कब आज़ाद हो पाएँगे
पुरखों के पाप से?
क्या हो पाएँगे?
क्या तुम जानते हो
हम सब भी चाहते है बदलाव?
पर बिना कबूतरों को
जलते घर से
दूर भगाए
हमारा योगदान?
वह सब जो संभव है
पर अगर चंदा चाहिए
तो आगे बढ़ जाओ
२४ जून २००७
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