अनुभूति में कुमार लव
की रचनाएँ-
क्रांति
नया सवेरा
बुरा जो देखन मैं चला
शून्यता
सुरक्षा
सेतु पर
हूँ शायद
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हूँ शायद
शुरुआत में
कई रास्ते थे
मेरे सामने,
कई संभावनाएँ,
इन्हीं में खोई रहती थी।
हाँ,
नहीं जानती थी मैं-
कहाँ जाता कौन सा रास्ता,
करना क्या हैं वहाँ।
और तुमने,
सहायता करने के लिए,
मुझे इस कोठी में पहुँचा दिया,
अब जानती हूँ मैं-
मुझे करना क्या हैं,
जानती हूँ मैं-
सफलता के प्रतिमान।
जानती हूँ मैं-
उठ रही हूँ ऊँची,
हर वर्ष।
पर आज
दर्पण में झाँकती
सोचती हूँ मैं-
संभावनाओं और इस प्रतिबिंब में जो भेद है,
उसे दूर कर पाऊँगी कभी?
सारा जीवन मेरा,
बचा हुआ,
लग जाएगा
इस खाई को भरने में,
शायद तब... १२ मई २००८ |