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अनुभूति में दिव्यांशु शर्मा की रचनाएँ 

कविताओं में-
इकहरी सड़क
एक प्याली सैलाब
चाँद और उपमान
ज़रूरत

माँ
रक्षाबंधन
मुफ़लिस

  माँ

तेरे चूल्हे के पास बैठा,
बचपन से देख रहा हूँ माँ,
किस तरह से तू,
आटे को लोई में,
लोई को कच्ची रोटी में,
और उस कच्ची रोटी को,
तवे पर उलट पलट,
पक्की रोटी में तब्दील कर देती है...
कभी तेरे हाथ से,
कोई रोटी जलती नहीं,
न तवा खाली रहता है कभी!!!
चूल्हे के अंदर,
साँस लेती हुई लौ भी,
जैसे तेरा कहा मानती है!!!
माँ, मै भी,
एक अधपकी,
रोटी हूँ,
एक गुँथे हुए आटे का टुकड़ा,
तूने मुझको भी,
आटे से लोई में,
तब्दील किया है...
माँ ये ज़मीन की आग भी,
तेरा कहा मानती है,
मैं जानता हूँ कि जब तक तू है,
मुझे जलने नहीं देगी...
मुझे जलने नहीं देगी...

३ मार्च २००८

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