अनुभूति में दिव्यांशु शर्मा की रचनाएँ—
कविताओं में-
इकहरी सड़क
एक प्याली सैलाब
चाँद और उपमान
ज़रूरत
माँ
रक्षाबंधन
मुफ़लिस
|
|
एक प्याली सैलाब एक आम-सी
दोपहर,
एक आम-सी कैन्टीन,
एक मामूली-सी टेबल,
एक मामूली-सा मैं...
एक सादी-सी चाय की प्याली के,
एक तरफ़ बैठा,
तुम्हारे गैर मामूली हाथ,
देख रहा था...
इन हाथों में, इन आँखों में,
था एक लम्हा प्यास का,
थी एक प्याली सैलाब की...
मुझे गई रात पड़ी हुई,
चंद किताबें याद आईं...
मैंने उन हाथों को थामा,
लकीरों को पढ़ा...
आँखों को देखा,
खुद को ढूँढा,
जाने कहीं कुछ पिघला,
और पिघली एक ढेली इश्क की,
एक प्याली सैलाब की...
लम्हा दर लम्हा,
पेड़ों की परछाई,
लंबी होती गई,
मैं खुद मे खोया,
तुम्हे ं
ढूँढा किया...
और हमारे बीच तड़पती रही,
हमारे बीच सुलगती रही...
एक प्याली चाय की,
एक प्याली सैलाब की...
३ मार्च २००८ |