अनुभूति में दिव्यांशु शर्मा की रचनाएँ—
कविताओं में-
इकहरी सड़क
एक प्याली सैलाब
चाँद और उपमान
ज़रूरत
माँ
रक्षाबंधन
मुफ़लिस
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इकहरी सड़क
रेत के टीले लग कर जो इकहरी सड़क,
तुम्हारे दर तक जाती है,
उसे देखकर मुझे अपने हाथ की,
लकीर याद आती है,
लकीर भी वो जो जिंदगीनामा कहती है,
कितनी मासूम है ये सड़क,
जब बूढ़े बरगद के नज़दीक से होकर गुज़रती है,
तो यों लगता है कि,
कोई छोटी बच्ची
दादा से साथ चलने की ज़िद करती हो,
ऐसी एक मासूम ज़िद मैंने भी की थी तुमसे,
पर तुम तो बस बरगद होकर रह गई हो,
और मै शायद सड़क...
खैर छोड़ो...
३ मार्च २००८ |