अनुभूति में
अंजल प्रकाश की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अब मुझे नींद
आँखों का ओस
तेरी आँखें क्यों बोलती हैं
ये कैसा शहर है
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ये कैसा शहर
है
उदासी की डगर है अंधेरों का नगर है
धुंध के साए में डूबा
ये कैसा शहर है ...ये कैसा शहर है ...
बाहर का उजाला अन्दर का अंन्धेरा
बेचैनी बिखेरता सुबह का सवेरा
मौसम के साथ यहाँ लोग बदलते हैं
अपनी उदासी में दूसरों को लपेटते हैं
इंसानी हस्ती मिटा कर यहाँ पर
मशीनों की तरह तो लोग मिलते हैं
फिर कहते हैं इतने उदास क्यों हो
मैं कहता हूँ कि ...ये शहर का असर है
.ये शहर का असर है
वो कहते हैं खुशी हम कहाँ से लाएँ
जो उधार में भी ना मिले यहाँ ...उसे कहाँ से पाएँ
मै कहता हूँ तुम यहाँ के तो न हो
किसी ने कभी जो खुशी तुम पे बाँटी उसे तो खर्च करो
एक बाँटोगे हजार मिलेगा
...इस शहर का भी कुछ भला होगा
इंसानियत का जज्बा हर दिल में होता है
प्यार की खुशबू से कौन दिल न धडकता है
आओ आज अन्दर से उस इंसान को जगाएँ
एक नया शहर बनाएँ ...एक नया शहर बनाएँ
१६ अक्तूबर २००४
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