अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अंजल प्रकाश की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अब मुझे नींद
आँखों का ओस
तेरी आँखें क्यों बोलती हैं
ये कैसा शहर है
 

 

तेरी आँखें क्यों बोलती हैं

तेरी आँखें क्यों बोलतीं हैं
दिल के कितने राज खोलतीं हैं

कही अनकही सुनी अनसुनी
बातों की परतें खोलतीं हैं
तेरी आँखें क्यों बोलतीं हैं

तूने
आँखें मिलाई दिल मिलाए
वो बात छुपाई जो छुप ना पाए
नीची आँखों से तूने
इश्क के बहुत से धुएँ बनाए
उन धुओं पर बैठ कर
तेरे ख्वाब ने बहुत से मकाँ बनाए

फिर एक दिन
आँखों ने दिल से बेवफाई की
एक पानी की परत
दिल से उधार ले कर
धुएँ के बादल छाँट डाले
उस दिन तेरी आँखों ने
मेरे दिल से बातें की
तुने कुछ नहीं कहा
बस आँखों ने दिल के राज बताए

आँखों को ये समझा दे दोस्त
दिल की परतें खोल दे
इश्क के राज बोल दे
क्या पता कल सहर हो ना हो
और दिल की बात अधूरी रह जाए
अपनी जिन्दगी तो एक नाव है
किसको पता कब किनारे का साथ छोड़ जाए

पता है
इश्क की तासीर क्या होती है
वो अंगारे की तरह
चुपके चुपके सुलगती है
आग की लपटें उसका
साथ कभी ना देतीं हैं
और धीरे धीरे अंगारे को
राख की शक्ल दे देतीं हैं
फिर जली इश्क की राख
आसमान में उड जाती है

मैं चाहता हूँ
कभी ऐसी ही एक राख का कण
उसकी आँखों में पड़ जाए
थोडा पानी मेरी याद का न सही
आँखों की किरकिरी बन कर ही निकल आए

और फिर हमारी तमन्ना जिन्दा रहे
कि तेरी आँखें दिल के साथ बोलें
किसी दिन दिल के सब राज खोलें

१६ अक्तूबर २००४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter