अनुभूति में
अंजल प्रकाश की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अब मुझे नींद
आँखों का ओस
तेरी आँखें क्यों बोलती हैं
ये कैसा शहर है
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आँखों का ओस
एक शाम मेरी आँखों का ओस
पास आते आते रुक गया
कहा आऊँगा पर एक बात बता
इतने दिनों बाद फिर क्यों याद आई
पता है पिछली बार कब मिले थे
जब भीनी भीनी रातों में दो फूल खिले थे
तुमने उसका हाथ पकडा था
और उसने आखें फेर लीं थीं
फूल सूख कर तेरी किताबों के हवाले हुआ
और फूल के ओस ने तेरी आँखों से बातें की
आज क्या बात है
मैंने कहा आज बहुत दिनों के बाद
एक एहसास से जी रहा हूँ
ये उस समय की बात है
जब किसी खुशनुमा आँखों में
पानी का एक कतरा आते आते रुक गया था
मासूम चेहरे ने चतुराई से बात दबा दी
इलजाम ये लगा कि दिल की राख में जो चिनगारी थी
तुम्हारी बातों से एक आग सुलगा गईं
मैं उस दर्द से आहत आज भी सुलग रहा हूँ
मेरे पास आ मेरे ओस. तेरे आगोश में सोना चाहता हूँ
१६ अक्तूबर २००४
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