अनुभूति में
किशन साध
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
पता करे कोई
फुर्सत ही फुर्सत है
मत पूछो
यारी रखना
सहूर की बातें
अंजुमन में-
आज मेरी बात का उत्तर
दर बदर
फलक पे दूर
संगवारी को
मुक्तक में-
अपनी पलकें नहीं भिगोते |
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फलक पे
दूर
फलक पे दूर उठती रौशनी देखो।
हँसो मत, जाओ अपनी झोपड़ी देखो।
किवाड़ों की दराजों में छिपी बैठी,
कोई इस रौशनी की बुज़दिली देखो।
सरे मह्फिल दुपट्टा खींच लेते हैं,
गुनाहों की जरा ज़िंदादिली देखो।
लगी दिल की कभी देखी नहीं जिसने,
चिढ़ाता है ये कहकर दिल्लगी देखो।
कहाँ चन्दा के चक्कर में पड़े हो दोस्त,
भरो थाली में पानी चाँदनी देखो।
१४ जुलाई २०१४ |