पाँच
मुक्तक (४)
कैसे पिता हो
दूध में थोड़ा पानी मिलाओ ज़रा,
भरके बोतल, उसे अब पिलाओ ज़रा,
रो रहा वो, तुम्हें कुछ नहीं हो रहा,
पालने की ये डोरी हिलाओ ज़रा।
अब न होगा
वांछित अभिसार मुझसे अब न होगा,
ऊष्मा-सा प्यार मुझसे अब न होगा,
रीझ पाए, रीझ ले मेरे गुणों पर,
ऊपरी शृंगार मुझसे अब न होगा।
स्वर्णमृग
स्वर्णमृग इक दुकां में मिलता है,
हाय, सीता का मन मचलता है,
क्या करें राम जी की तनखा में,
इन दिनों काम नहीं चलता है।
मकरंद ही ठीक है
एक दिन रंग ने गंध से ये कहा,
तू निखर जाएगी आके मुझमें नहा,
गंध बोली कि मकरंद में ठीक हूँ,
जा निगोड़े, सदा तितलियों में रहा।
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