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अनुभूति में बागेश्री चक्रधर की रचनाएँ -

चुभन
तब और अब
बताती हूं
प्यार क्या है
मेहनत का नगीना

अपना जनतंत्र
लोकतंत्र की खातिर
कहेगी दुनिया
क्यों
एक सलाह


कैसे समझाऊं
उपेक्षा का क्षण
उल्लास के क्षण
क्यों है
क्या करेगा तू


कैसे पिता हो
अब न होगा

स्वर्णमृग
मकरंद ही ठीक है


संकलन में-
नया साल- शुभकामना

 

पाँच मुक्तक (४)

कैसे पिता हो

दूध में थोड़ा पानी मिलाओ ज़रा,
भरके बोतल, उसे अब पिलाओ ज़रा,
रो रहा वो, तुम्हें कुछ नहीं हो रहा,
पालने की ये डोरी हिलाओ ज़रा।

अब न होगा

वांछित अभिसार मुझसे अब न होगा,
ऊष्मा-सा प्यार मुझसे अब न होगा,
रीझ पाए, रीझ ले मेरे गुणों पर,
ऊपरी शृंगार मुझसे अब न होगा।

स्वर्णमृग

स्वर्णमृग इक दुकां में मिलता है,
हाय, सीता का मन मचलता है,
क्या करें राम जी की तनखा में,
इन दिनों काम नहीं चलता है।

मकरंद ही ठीक है

एक दिन रंग ने गंध से ये कहा,
तू निखर जाएगी आके मुझमें नहा,
गंध बोली कि मकरंद में ठीक हूँ,
जा निगोड़े, सदा तितलियों में रहा।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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