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अनुभूति में बागेश्री चक्रधर की रचनाएँ -

चुभन
तब और अब
बताती हूं
प्यार क्या है
मेहनत का नगीना

अपना जनतंत्र
लोकतंत्र की खातिर
कहेगी दुनिया
क्यों
एक सलाह


कैसे समझाऊं
उपेक्षा का क्षण
उल्लास के क्षण
क्यों है
क्या करेगा तू


कैसे पिता हो
अब न होगा

स्वर्णमृग
मकरंद ही ठीक है


संकलन में-
नया साल- शुभकामना

 

पाँच मुक्तक (१)

चुभन

बस छलावे दिखाता रहा रात दिन,
तूने वादे किए जो, उन्हें आके गिन,
मैंने यादों में तुझको लगाया है यों,
पत्तियों में लगाई हो ज्यों आलपिन।

तब और अब

पहले हर रंग मेरा सुहाया बड़ा,
लाड़ अपने खतों में लड़ाया बड़ा,
आ गई हूँ तो मुझसे नज़र फेर लीं,
क्या समझता है खुद को तू, आया बड़ा।

बताती हूँ

उड़ सकूँ चाहे जहाँ, ऊँचाइयाँ दो वो मुझे,
मुक्त मृग की चाल दो, अंतस में सिहरन हो मुझे,
पूछते हो चाहिए क्या, फिर बताती हूँ चलो,
पत्तियों से छानकर सूरज की किरणें दो मुझे।

प्यार क्या है

खट्टी इमली है या करेला है,
एक मेला है या झमेला है,
प्यार क्या है वो बताए कैसे,
जिसने ये खेल नहीं खेला है।

मेहनत का नगीना

झिलमिलाता है झीना झीना है,
श्रम का, मेहनत का वो नगीना है,
जिसको सूरज तलक सुखा न सके,
वो तो मज़दूर का पसीना है।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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