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अनुभूति में बागेश्री चक्रधर की रचनाएँ -

चुभन
तब और अब
बताती हूं
प्यार क्या है
मेहनत का नगीना

अपना जनतंत्र
लोकतंत्र की खातिर
कहेगी दुनिया
क्यों
एक सलाह


कैसे समझाऊं
उपेक्षा का क्षण
उल्लास के क्षण
क्यों है
क्या करेगा तू


कैसे पिता हो
अब न होगा

स्वर्णमृग
मकरंद ही ठीक है


संकलन में-
नया साल- शुभकामना

 

पाँच मुक्तक (३)

कैसे समझाऊँ

दर्द ही था ग़लत, आह तो ठीक थी,
मौन ही था गलत, चाह तो ठीक थी,
हो अनाड़ी, ये कैसे बताऊँ तुम्हें,
दौड़ ही थी ग़लत, राह तो ठीक थी।

उपेक्षा का क्षण

क्या लिखा है न जाने मेरे माथ पर,
रेख जंजाल सा है मेरे हाथ पर,
गौर से मैंने देखा तो ऐसा लगा
कोई बुढ़िया पड़ी जैसे फुटपाथ पर।

उल्लास के क्षण

हस्त-रेखाएँ ज्यों छूटती फुलझड़ी,
कुछ हैं सीधी सरल, कुछ हैं आड़ी पड़ी,
इन लकीरों का मतलब नहीं जानती,
पर लगे जैसे कुछ मृग भरें चौकड़ी।

क्यों हैं

तेरी करनी बनावटी क्यों हैं?
तेरी कथनी दिखावटी क्यों हैं?
कथनी करनी में शुद्धता की जगह,
मामला ये मिलावटी क्यों है?

क्या करेगा तू

तेरी नफ़रत धरा से भारी है,
ये अहंकार गगनचारी है,
तुझसे सबका इलाज क्या होगा,
तू तो खुद एक महामारी है।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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