अनुभूति में
यश मालवीय
की रचनाएँ —
गीतों में-
आश्वासन भूखे को न्यौते
कहो सदाशिव
कोई चिनगारी तो उछले
गीत फिर उठती हुई आवाज है
चेहरे भी आरी हो जाते हैं
दफ्तर से लेनी है छुट्टी
नन्हे हाथ तुम्हारे
प्रथाएँ तोड़ आये
बर्फ बर्फ दावानल
मुंबई
हम तो सिर्फ नमस्ते हैं
यात्राएँ समय की
विष बुझी हवाएँ
शब्द का सच
सिर उठाता ज्वार
संकलन में —
वर्षा मंगल –
पावस के दोहे
नया साल–
नयी सदी के दोहे
दोहों में —
गर्मी के दोहे |
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नन्हे हाथ
तुम्हारे
हिलते रहे हरे पत्तों से
नन्हे हाथ तुम्हारे
दफ़्तर जाना ही था,
पापा क्या करते बेचारे।
दफ़्तर जो अपने सपनों की
खातिर बहुत जरूरी
खाली जेब कहाँ से होंगी
ज़िदें तुम्हारी पूरी
उड़ जायेंगे आसमान में
गैस भरे गुब्बारे
तुम्हें चूमना चाहा भी तो
घड़ी सामने आयी
कल की खुली अधूरी फ़ाइल
पड़ी, सामने आयी
बेटे ! मुझे माफ़ कर देना
मिलना बाँह पसारे
बजते रहे कान रस्ते भर
सुना तुम्हारा रोना
और पास ही रहा बोलता
चाभी भरा खिलौना
राह धूप में दिखी अँधेरी
ओ घर के उजियारे !
शाम पहुँच कर दफ़्तर से घर
तुमको बहला लूँगा
गर्म चुम्बनों से गुलाब सा
चेहरा नहला दूँगा
किलकारी में खो जायेंगे
सारे आँसू खारे
बेटे माँ को भी समझाना
उससे भी मिलना था
समय निगोड़ा आड़े आया
फूलों सा खिलना था
समय ढेर सा भर झोली में
आऊँगा मैं प्यारे !
१६ फरवरी २००५ |