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अनुभूति में यश मालवीय की रचनाएँ —

गीतों में-
आश्वासन भूखे को न्यौते
कहो सदाशिव
कोई चिनगारी तो उछले
गीत फिर उठती हुई आवाज है
चेहरे भी आरी हो जाते हैं
दफ्तर से लेनी है छुट्टी
नन्हे हाथ तुम्हारे
प्रथाएँ तोड़ आये
बर्फ बर्फ दावानल
मुंबई
हम तो सिर्फ नमस्ते हैं
यात्राएँ समय की
विष बुझी हवाएँ
शब्द का सच
सिर उठाता ज्वार

संकलन में —
वर्षा मंगल – पावस के दोहे
नया साल– नयी सदी के दोहे

दोहों में —
गर्मी के दोहे

 

गीत फिर उठती हुई आवाज है

गीत खुशबू की मशालें हैं
गन्ध की चिनगारियाँ बोती हुई
किस तरह फिर भला जागेगी नहीं
राह में सम्वेदना सोती हुई

गीत तो उजली कसौटी है
कसो इस पर स्वयं का पहचान लो
चलो अपनी रीढ़ से पहले जुड़ो
फिर भले कोई नया प्रतिमान लो
गीत दस्तक है किवाड़े की
चुप्पियों में चेतना बोती हुई

गीत पूरब की दिशा भी है
रोज सूर्योदय सँजोए आस का
रात कितनी भी अँधेरी हो भले
कुछ न बिगड़ेगा सघन विश्वास का
गीत बदली है घनी आषाढ़ की
धूल मन की नेरू से धोती हुई

गीत रोली आस्था की है
रोशनी को पूजते घर–द्वार सी
एक छवि है, टेरती है जो
प्रार्थना सी, मंत्र सी, त्योहार सी
गीत फिर उठती हुई आवाज़ है
बोझ कल का बिन थके ढोती हुई

गीत है पावन ऋचा अनुभूति की
जो लिखी है प्रकृति के भी भाल पर
गीत संस्स्कृति है समन्वय की
एक डाली झुकी जैसे ताल पर
गीत फिर आती हुई तारीख है
क्रूर यादें भीड़ में खोती हुई

९ जुलाई २००१

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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