बर्फ़–बर्फ़ दावानल
कसी मुठ्ठियाँ
तपते माथे
गुमसुम सा कोलाहल
धुआँ धुआँ से
उजले चेहरे
बर्फ़–बर्फ़ दावानल
सुबह सुबह की आपाधापी
भाप भरा संवाद
नरभक्षी मौसम के मुँह फिर
लगा खून का स्वाद
सुनो नतीजा
फिर मौसम का
तरह तरह की अटकल
झुक झुक आये
छत पर लेकिन
राख हो गये बादल
तेज़ किए नाखून हवा ने
उफ़ ! हैरत–अंगेज़
भरी जनवरी गरमाये हैं
अखबारों के पेज
एक सरीखे
दिन लगते हैं
छाती ऊपर पीपल
चिथड़े चिथड़े
छितरा कुहरा
झँझरी झँझरी कम्बल
१६ फरवरी २००५ |