आँख में
नींद नहीं फ़रमाइश
की रोज़ नई बारात
आँख में नींद नहीं है!
पर्दे सिर्फ़ पुराने हैं
इसलिए बदल दो
सोफे का भी चलन
कभी का बदल गया है
दीवारों को
एक नई दरकार हुई है
एक पेंटिंग का
उन तक भी दखल गया है
ड्राइंग-रूम
मचाता नित उत्पात
आँख में नींद नहीं है!
सोचा था
कुछ तर्क़ बचाकर ले जाएँगे
लेकिन सूरत बहुत अधिक
सीरत पर भारी
फँसी रंगोली तक
बाज़ार-हाट चंगुल में
और सादगी
एक सनक या बस लाचारी
छोटी पड़ती
चादर पर आघात
आँख में नींद नहीं हैं!
बच्चे रोज़
नई स्कीम उठा लाते हैं
किस्तों के उधार की
घर पर आँख गड़ी है
सीमाओं को लाँघ-फाँद
भस्मासुर पूँजी
ले हाथी के दाँत
द्वार पर रोज़ खड़ी है
आतंकित है
रोज़ चैन का गात
आँख में नींद नहीं है!
२ नवंबर २००९ |