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अनुभूति में शुभम श्रीवास्तव ओम की रचनाएँ-

गीतों में—
उदास घड़ी
कोई मुझमें
निर्वासन
फिर उठेगा शोर एक दिन
बेचैन उत्तरकाल
 

 

उदास घड़ी

गूँगी-बहरी दीवारों पर
एक उदास घड़ी।

विचारार्थ अब भी रसीद है
बडे़ 'स्साब' का टेबल खाली
अजगर डस्टबिन की अर्जी
बिल फर्जी है, बातें जाली

सरकारी कैलेण्डर का
सहती उपहास घड़ी।

कल-पुर्जों की माँगें फिर भी
हेडफोन, रीमिक्स तराने
गुमसुम चलने लगी आजकल
वही व्यस्तता, वही बहाने

ब्रेड, कर्टसी, ठगी और
करती उपवास घड़ी।

कुहरा, सड़कें, रूठा सूरज
पंचिंग-दौड़ और कोलाहल
ठीक समय पर कमरे खुलते
आदिम और मशीनी हलचल

धूप जोहती छत-
दिन ढलने का अहसास घड़ी।

१ नवंबर २०१७

 

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