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अनुभूति में शुभम श्रीवास्तव ओम की रचनाएँ-

गीतों में—
उदास घड़ी
कोई मुझमें
निर्वासन
फिर उठेगा शोर एक दिन
बेचैन उत्तरकाल
 

 

बेचैन उत्तरकाल

दूर तक केवल घना आकाश
उलझन, आँधियों के दिन
रेत की फिसलन समेटे
मुट्ठियों के दिन।

शीतयुद्धों में झुलसता
चीखता बेचैन उत्तरकाल
एक लँगड़ी शांतिवार्ता
उम्र भर वैचारिकी हड़ताल

उग रहे हैं युद्धबीजी
संधियों के दिन।

चाहतें अश्लील, नंगा-
नाच, फाड़े आँख, मन बहलाव
काटना जबरन अँगूठा
रोप मन में एकलव्यी भाव

लोग बौने, सिर्फ ऊँची-
तख्तियों के दिन।।

भावनाएँ असहिष्णु
देह सहमी, काँपता कंकाल
बुल-बीयर-सेंसेक्स
उथली रात, उबली नींद, आँखें लाल

ड्रॉप कालें और बढ़ती
दूरियों के दिन।

१ नवंबर २०१७

 

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