कोई मुझमें
कोई मुझमें-
मुझसे भी ज्यादा रहता है
मन में उगते-
सन्नाटों के
पंख कुतरता है।
कहा-अनकहा सब सुन लेता है
वह चेहरे की भाषा पढ़ता है
दबे पाँव ढलकर दिनचर्या में
रिश्तों की परिभाषा गढ़ता है
कोई है जो-
जीवन की
उल्टी धारा से
लड़ता
लेकर पार उतरता है।
आँगन में दाने फैलाता है
नये परों को पास बुलाता है
ठिगनेपन का दर्द समझता है
बूढ़े पेड़ों से बतियाता है
कोई
खुशबू जैसा छाता है
मेंहदी जैसा-
रंग निथरता है।
अधजीये काग़ज़ सरियाता है
खुली नोक पर कैप लगाता है
एक हथेली भर ताज़ी गर्माहट
कठुआये दिन में लौटाता है
कोई है जो-
मन में
कुछ पल को धुँधलाकर
अगले पल
कुछ और उभरता है।
१ नवंबर २०१७
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