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अनुभूति में शुभम श्रीवास्तव ओम की रचनाएँ-

गीतों में—
उदास घड़ी
कोई मुझमें
निर्वासन
फिर उठेगा शोर एक दिन
बेचैन उत्तरकाल
 

 

निर्वासन

लाँघते दहलीज घर की
एक जोड़ी पाँव।

अर्थ की प्रतिपूर्ति
निर्वासन बनी है
आदमी की आदमी से ही
ठनी है

बढ़ी शहरों की सघनता
हुये खाली गाँव।

पस्त सड़कें धूप से
पड़ते फफोले
लोग-
चुनने में लगे मंजिल
मँझोले

और सूरज एक उछला
और तड़पी छाँव।

प्रश्न, चिंतन-मनन
अनुसंधान, आविष्कार
मोड़ अंधे और मुड़ते ही
खड़ी दीवार

ढूँढ ही लेती है
लगती चोट-इक कुठाँव।

१ नवंबर २०१७

 

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