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अनुभूति में श्रीधर आचार्य शील की रचनाएँ-

अंजुमन में-
क्या जमाना आ गया है
झरने लगे हैं
नफरत के जो भाव भरे हैं
मेरे जीवन की बगिया
रात खड़ी है

गीतों में-
इक छोटा सा अंतराल
कुछ दिन बीते
तुमने कर दिया सही
यह कैसा अनुबंध
 

तुमने कर दिया सही

कविता के मुक्तछंद में तुमने
जबसे है बात कुछ कही
जीवन के उजले पृष्ठों पर
हमने है कर दिया सही!

सपनों में अमलतास खिलते हैं
झरते हैं प्रीत के सुमन
लगती है चाँदनी यहाँ
तन पर हो हल्दिया वसन
लहरों पर झूमती हुई
जबसे है यामिनी बही!

गमले में धूप दुबककर बैठी
उजियारा देख मुस्कुराता है
देहरी के मखमली चँदोबे पर
सूरज का पैर फिसल जाता है
बगिया की झूमती बहारों पर
जबसे है खिल गयी जूही!

जीवन के उजले पृष्ठों पर
हमने है कर दिया सही!

१ फरवरी २०१८

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