अनुभूति में
शैलेन्द्र शर्मा
की रचनाएँ-
गीतों में-
खुली फेसबुक हुई दोस्ती
दस रुपये की कठपुतली है
प्रेक्षारानी सुनो कहानी
बाज़ार है
बाबा
रामजियावन बाँच रहे
हैं
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राम जियावन बाँच
रहे हैं
रामजियावन बाँच रहे हैं
रामचरितमानस
होइहै सो जो राम रचि राखा
को करि तरक बढावहि साखा'
बचपन से पचपन तक पहुँचे
रटी यही जीवन-परिभाषा
आँख खुली तो नथने फूले
फडक रही नस-नस
'ढोल, गँवार, शूद्र, पशु नारी
सकल ताडना के अधिकारी'
राजतंत्र से लौकतंत्र तक
उक्ति शोषितों पर यह भारी
तीर वही हैं वही निशाने
बदला है तरकश
रामकथा सुंदर करतारी
संशय विहग उडावन हारी'
कलजुग में त्रेता की गाथा
कितनी सच है हे! त्रिपुरारी
संशय के इस मकड़जाल मे
जकड़ रहे बरबस
२२ सितंबर २०१४
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