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अनुभूति में शैलेन्द्र शर्मा की रचनाएँ-

गीतों में-
खुली फेसबुक हुई दोस्ती
दस रुपये की कठपुतली है
प्रेक्षारानी सुनो कहानी

बाज़ार है बाबा
रामजियावन बाँच रहे हैं

 

बाज़ार है बाबा

नई सदी बाज़ार है बाबा
जिन्सों का भंडार है बाबा

आँख खुले तो घर में हरदम
आँख बिछाये मिलता है
अमुक-अमुक आकर्षक सस्ता
लो खरीद यह कहता है
विज्ञापन ही विज्ञापन हैं
कहने को अखबार है बाबा

टी.वी. चैनल सैर-सपाटे
घर -आँगन रिश्ते-.नाते
सब पर यह भारी पडता
सब इसके अन्तर्गत आते
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा
इसका ताबेदार है बाबा

इसका सम्मोहन कुछ ऐसा
हम आ जाते झाँसे में
जैसा चाहे ढाल रहा यह
हम को अपने साँचे में
मुख-मंडल से नभ-मंडल तक
इसका कारोबार है बाबा

२२ सितंबर २०१४

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