अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शैलेन्द्र शर्मा की रचनाएँ-

गीतों में-
खुली फेसबुक हुई दोस्ती
दस रुपये की कठपुतली है
प्रेक्षारानी सुनो कहानी

बाज़ार है बाबा
रामजियावन बाँच रहे हैं

 

दस रुपये की कठपुतली है

दस रुपये की कठपुतली है
टेडीवियर हजार का
कसने लगा गले में फंदा
'ग्लोबल'के व्यापार का

आलू भरे पराठे भूले
जीरा डाला छाछ
'पिज़्जा-बर्गर'अच्छे लगते
'कोलड्रिंक' के साथ
'स्लाइज-माज़ा' मन को भाये
आम लगे बेकार का

चटनी और मुरब्बे फीके
'सास-जैम'की धूम
लंबा 'पेग'चढा कर 'डाली'
रही नशे में झूम
'पानी-पानी' जिसके आगे
झोंका सर्द बयार का

क्यारी-क्यारी उगे 'कैक्टस'
गायब हुए गुलाब
लोक संस्कृति लगती जैसे
दीमक लगी किताब
भूल गये इतिहास पुराना
हम अपने बाज़ार का

२२ सितंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter