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चार कुंडलियाँ कंप्यूटर और इंटरनेट
(१)
जालजगत है
देवता, कम्प्यूटर भगवान।
शोभा है यह मेज की, ऑफिस की है शान।।
ऑफिस की है शान, सजाता अनुबन्धों को।
दूर देश में बहुत, बढ़ाता सम्बन्धों को।।
कह मयंक कविराय, अनागत ही आगत है।
सबसे ज्ञानी अब दुनिया में जालजगत है।।
(२)
कम्प्यूटर अब बन गया, जीवन का आधार।
इसके बिन चलता नही, चिट्ठों का व्यापार।।
चिट्ठों का व्यापार, लेख-रचना का आँगन।
चिट्ठी-पत्री, बातचीत का है यह साधन।।
कह मयंक कविराय, यही है उन्नत ट्यूटर।
खाता-बही हटाय, लगाओ अब कम्प्यूटर।।
(३)
चिट्ठाकारी को लगा, बेनामी का रोग।
टिप्पणियों को दानकर, देते मोहन भोग।।
देते मोहन भोग, सृजन का लक्ष यही है।
अपनेपन का सन्देशों में पक्ष नहीं है।।
कह मयंक हथियार बिना है मारामारी।
टिपियाने का नाम, आज है चिट्ठाकारी।।
(४)
झूठी सुन तारीफ को, मन ही मन हर्षाय।
जब सुनते आलोचना, हृदय कुन्द हो जाए।।
हृदय कुन्द हो जाए, विरोधी बन जाते हैं।
खुदगर्जीँ में सच को, सहन न कर पाते हैं।।
कह मयंक ब्लॉगिंग की दुनिया बहुत अनूठी।
हर्षित होते लोग, प्रशंसा सुन कर झूठी।।
२५ अप्रैल २०११
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