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अपनों की रखवाली
 

 

 

 

   

 





 

 


 




 


अपनों की
रखवाली करते-करते उम्र तमाम हुई
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई
और शाम हई

मन के
सुमन चहकने में है,
अभी बहुत है देर पड़ी
गुलशन
महकाने को कलियाँ
कोसों-मीलों दूर खड़ीं
पवन-बसन्ती
दरवाजों में
आने में नाकाम हुई

पहरेदारी करते-करते सुबह हुई
और शाम हई

चाल-ढाल
है वही पुरानी,
हम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये
साल में थे
वैसे ही नये साल में हैं

गुमनामी
के अंधियारों में
खुशहाली परवान हुई

पहरेदारी करते-करते सुबह हुई
और शाम हई

-- डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक
३ जनवरी २०११

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