तम अमावस का
मिटाने को दिवाली आ गयी
है
दीपकों की रोशनी सबके दिलों को
भा गयी
है
जगमगाते
खूबसूरत लग रहे नन्हें दिये,
लग रहा जैसे सितारे हों धरा पर आ गये,
झोंपड़ी महलों के जैसी
मुस्कराहट पा
गयी है
दीपकों की रोशनी सबके दिलों को
भा गयी
है
भवन की
दीवार को बेनूर बारिश ने करा
था,
गाँव के कच्चे घरों का नूर भी इसने
हरा था,
रंग-लेपन से सभी में अब
सजावट छा गयी
है
दीपकों की रोशनी सबके दिलों को
भा गयी
है
छँट गया
सारा अन्धेरा आज है परिवेश
का,
किन्तु भीतर घात से बदहाल, भारत देश
का,
प्यार जैसे शब्द को भी तो
बनावट खा
गयी है
दीपकों की रोशनी सबके दिलों को
भा गयी
है
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डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
१ नवंबर २०१०