अनुभूति में
राणा प्रताप सिंह
की रचनाएँ -
अंजुमन में-
एक टूटे तार की
तुमने जब कुछ बात कही थी
बड़ी मेहनत
से
मैं भीतर से
सुल्तान जो
अपना है
गीतों में-
अनगढ़ मन
आई है वर्षा ऋतु
नया कोई गीत ले
रीत रही है प्रतिपल
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सुल्तान जो अपना है
सुल्तान जो अपना
है वो उनका मुसाहिब है
आये हैं जिधर से वो कहते वहीँ मगरिब है
खामोश ही रहता है अब तक वो नहीं समझा
दुनिया नहीं चुप्पी की दो लफ्जों की तालिब है
हम देर से जागे तो ये कोई खता है क्या?
इक उम्र हमारी क्या बस नींद मे वाजिब है?
उस खत का नहीं बदला मज़मून अभी तक जो
कल उनसे मुखातिब था अब तुमसे मुखातिब है
कुछ और मछलियाँ भी बाहर तो निकल आयें
सैलाब के आने में कुछ देर मुनासिब है
कोशिश तो बहुत की पर बदला न हवा का रुख
कल भी उसी जानिब था अब भी उसी जानिब है
२३ सितंबर २०१३
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