अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में राणा प्रताप सिंह की रचनाएँ-

अंजुमन में-
एक टूटे तार की
तुमने जब कुछ बात कही थी

बड़ी मेहनत से
मैं भीतर से
सुल्तान जो अपना है

गीतों में-
अनगढ़ मन
आई है वर्षा ऋतु
नया कोई गीत ले
रीत रही है प्रतिपल

 

रीत रही है प्रतिपल

रीत रही हैं प्रतिपल अपनी गंगा माई
उनको भी ज्ञान हुआ, मानवता बौराई

शासित और शासक में
आज बड़ी अनबन है
चीर हरण हो रहा
कान्हा तो मधुबन है
नई कोंपलें नम हैं
किन्तु जड़ें बेदम हैं
स्वार्थ के तराजू का
हुआ संतुलन कम है
आज के विचारों में बची नहीं गहराई

मेरुदंड में भीषण
मची हुई कंपन है
शिरा और धमनी में
बेअदबी उलझन है
शगल ये पुराना है
इसे बदल जाना है
नव चेतन के पट की
साँकल खुलवाना है
बाते ठुकरानी है अब तक जो मनवाई

२७ सितंबर २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter