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मैं भीतर से
मैं भीतर से ज़रा
बच्चा रहा हूँ
तभी तो सच का मैं चेहरा रहा हूँ
बियाबाँ और भी आगे हैं लेकिन
मगर मैं हूँ कि बढ़ता जा रहा हूँ
मुनासिब है नहीं अब ज़िक्र मेरा
मैं गुज़रे दौर का हिस्सा रहा हूँ
सिमट जाता है हर इक साल जो वो
मैं हिन्दुस्तान का नक्शा रहा हूँ
सदा हक माँगना पड़ता है मुझको
समय के हाथ का कासा रहा हूँ
मुहब्बत, बस मुहब्बत ही मुहब्बत
ज़माने को यही सिखला रहा हूँ
इलाही मुझको बस इतना बता दे
मैं क्या हूँ? और क्या करता रहा हूँ?
नहीं कर पाओगे तुम ख़त्म मुझको
मैं नुक्कड़ का कोई बलवा रहा हूँ
२३ सितंबर २०१३
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