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नव सृजन के गीत गाओ
स्वर मिलाकर, नव सृजन के गीत गाओ फिर, तिमिर के वक्ष पर दीपक
जलाओ।
भावना के मेह, सारे
छँट चुके हैं
कूप भी सब नेह के
अब पट चुके हैं।
अब समंदर के हृदय में, ज्वार की लहरें उठाओ।
फिर, तिमिर के वक्ष पर दीपक जलाओ।
चाँदनी से, चाँद अब
दहने लगा है केतु के घर, सूर्य अब
रहने लगा है।
सौरमण्डल में, जतन से दीप्त नव तारा उगाओ।
फिर, तिमिर के वक्ष पर दीपक जलाओ।
वेदना, बाजार में
बिकने लगी है चेतना में, नग्नता
दिखने लगी है।
मनुजता के भाल पर, पुरुषार्थ का टीका लगाओ।
फिर, तिमिर के वक्ष पर दीपक जलाओ।
शाख पर आते ही कलियाँ
कट रही हैं सृष्टि की सम्भावनाएँ
घट रही हैं।
भीरुता को त्याग, साहस-शक्ति का परचम उठाओ।
फिर, तिमिर के वक्ष पर दीपक जलाओ।
क्रूरताएँ, हृदय में
पलने लगी हैं भंगिमाएँ न्याय की
खलने लगी हैं।
राम का आदर्श, करुणा बुद्ध की उर में सजाओ।
फिर, तिमिर के वक्ष पर दीपक जलाओ।
कलुष हारिणि, स्वयं
मैली हो रही है हर अमिय संज्ञा
विषैली हो रही है।
कर भगीरथ यत्न, शिव-संकल्प की सुरसरि बहाओ।
फिर, तिमिर के वक्ष पर दीपक जलाओ।
१ अप्रैल २०१७
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