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आँखों में रात कट गई
आँखों में रात कट गई
एक धवल भोर के लिए।
एक किरन भी नहीं मिली
तरसते अँजोर के लिए।
पोर-पोर टीसते रहे
ज़ख़्म दाँत पीसते रहे।
जठरानल भड़कते रहे
नयन जल उलीचते रहे।
रोटी जब चाँद हो गई
लालसा चकोर के लिए।
म्लान सभी फूल हो गये
सपने दिक्शूल हो गये।
लहरों ने गोद ले लिया
ओझल सब कूल हो गये।
साँस-साँस यत्न कर रहे
सागर के छोर के लिए।
था अबूझ लेख भाल का
फिर भी हम बाँचते रहे।
क्या छूटा, क्या मिटा दिया
मन ही मन जाँचते रहे।
अर्थहीन ग्रन्थ सब हुए
भावना लजोर के लिए।
बात मन की मन में रह गई
और होंठ रह गये सिले।
फूलों की राह थी चुनी
किन्तु सिर्फ शूल ही मिले।
हाथ-पैर मारते ‘विकल’
जीवन की डोर के लिए।
१ अप्रैल २०१७
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