| 
                  अनुभूति में 
                  
					राम अधीर 
					की रचनाएँ- 
					नए गीतों में- 
					आग डूबी रात को 
					जब मुझे संदेह 
					की कुछ सीढ़ियाँ 
					जो कलाई पर बँधा है 
					मैं तो किसी नीम की छाया 
					
					गीतों में- 
					दूरी लगी 
					नदी से सामना 
					
					  
                   
                  
                   
                   | 
                  
					  | 
          
                  
                  नदी से सामना
					
					 जो नदी  
					गत रात गाँवों को बहाकर ले गई थी, 
					उस निठुर से बंधु मेरा कल सुबह  
					फिर सामना है। 
					 
					घर  
					बुलाकर रोज़ मेरे 
					आईनों को तोड़ती है। 
					वह असुंदर है, सभाओं से सदा  
					मुख मोड़ती है। 
					यह सुनिश्चित है  
					मुझे यह भाइयों से छीन लेगी, 
					इसलिए परिवार की यह डोर  
					मुझको थामना है। 
					द्वीप  
					उससे युद्ध करने  
					के लिए सन्नद्ध होंगे। 
					और तट बदला चुकाने के 
					लिए प्रतिबद्ध होंगे। 
					गुनगुनाना  
					इस नदी का बंद होना चाहिए 
					गीत से यह बेख़बर है, छंद  
					इससे अनमना है। 
					 
					इस नगर  
					में मैं विवादों के 
					चरण तक आ गया हूँ। 
					और सब खोकर चिरंतन से 
					क्षरण तक आ गया हूँ। 
					रुख बदल कर  
					यह बहे, इसमें भलाई है इसी की 
					या समंदर की शरण जाए,  
					सभी की कामना है। 
					 
					घाट की  
					बेचैनियाँ सुनकर 
					नहाना ठीक होगा। 
					दुखित मन को सांत्वना का  
					यह बहाना ठीक होगा। 
					जो बड़ों की  
					बात सुनकर वेग कम करना न चाहे  
					उस नदी को क्या पता यह पुल  
					पसीने से बना है। 
					 
					९ नवंबर २००६ 
                   
                   |