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अनुभूति में राम अधीर की रचनाएँ-

नए गीतों में-
आग डूबी रात को
जब मुझे संदेह की कुछ सीढ़िया
जो कलाई पर बँधा है

मैं तो किसी नीम की छाया

गीतों में-
दूरी लगी
नदी से सामना

 

 

 

दूरी लगी

जब मिला तो
आगमन के अनगिनत कारण दिये
और फिर उपकार के सब बोझ भी धारण किये
किंतु, मन से हर समय अच्छी
उसे दूरी लगी।

पास आया तो
मुझे कुछ छल दिखाई दे गया।
या कि मौसम के बिना मृग–जल
दिखाई दे गया।
और उस दिन यह मनोरम
साँझ सिंदूरी लगी।

सब उसी के
पक्षधर है, कौन सुनता बात को।
इस तरह मैं जीत कर भी सह
गया हूँ मात को।
मन नहीं माना, मिलन की
मीत मजबूरी लगी।

तुम इसे समझो
न समझो, यह तपस्या बन गई।
यह परायों की नहीं, अपनी
समस्या बन गई।
बन गया कंचन इसी से
साधना पूरी लगी।


९ नवंबर २००६

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