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                  अनुभूति में 
                  
					राम अधीर 
					की रचनाएँ- 
					नए गीतों में- 
					आग डूबी रात को 
					जब मुझे संदेह 
					की कुछ सीढ़ियाँ 
					जो कलाई पर बँधा है 
					मैं तो किसी नीम की छाया 
					
					गीतों में- 
					दूरी लगी 
					नदी से सामना 
					
					  
					
					  
                   
                  
                   
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					जब मुझे संदेह की कुछ सीढ़ियाँ 
					 
					जब मुझे संदेह की कुछ सीढियाँ चढनी पड़ी थीं, 
					तब लगा मुझको, तुम्हारे द्वार  
					पर पहरा लगा है। 
					 
					जानता हूँ मैं तुम्हारी आँख में 
					पानी नहीं है। 
					इसलिए तो मेघ का पाहुन 
					यहाँ दानी नहीं है। 
					तुम किसी की  
					 
					पीर को समझे बिना उपचार-रत हो, 
					और हो अनभिज्ञ मुझको घाव  
					कब गहरा गया है। 
					 
					यह समर्पण है मगर 
					विश्वास की बेला नहीं है। 
					क्योंकि तुमने दर्द को 
					हँसकर कभी झेला नहीं है। 
					 
					गाँव से उस छाँव की जब-जब मुझे पाती मिली थी, 
					इस नगर में प्यार का मौसम  
					मुझे ठहरा लगा है। 
					 
					इस हथेली का खुलापन देख लो 
					याचक नहीं हूँ 
					मैं किसी चौपाल या मठ का 
					कथा-वाचक नहीं हूँ। 
					 
					कौन सुनता है यहाँ पर गीत की अंतर-व्यथा को, 
					इन सभाओं का मुझे हर आदमी  
					बहरा लगा है। 
					 
					 
					२९ अगस्त २०११  
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