अनुभूति में
राम अधीर
की रचनाएँ-
नए गीतों में-
आग डूबी रात को
जब मुझे संदेह
की कुछ सीढ़ियाँ
जो कलाई पर बँधा है
मैं तो किसी नीम की छाया
गीतों में-
दूरी लगी
नदी से सामना
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आग डूबी
रात को
आग डूबी रात को क्या हो
गया है राम जाने
आइये हम चाँदनी के नाम से पाती लिखें
यह सफर लम्बा बहुत है
जानती है यह सदी
सीढ़ियों का खुरदरापन
और यह सूखी नदी
रोशनी का धर्म क्या है, हम नहीं कुछ जानते
क्या बुरा है, दीप से ही पूछकर बाती लिखें
इस तरह कब तक जलेंगे
पाँव तपती रेत में
कल हमें बतला गई थी
दोपहर संकेत में
जब घटाओं का नहीं कुछ भी भरोसा रह गया
किस मरुस्थल के लिये हम बूँद की थाती लिखें
हम किसी के हाथ के
मोहरे बने, तब-तब पिटे
चित्रकारी के प्रबलतम
मोह में अक्षर मिटे
एक भी तारा निहारेगा नहीं जब भोर तक
है उचित, अपने लिए हम रात गहराती लिखें।
२९ अगस्त २०११
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