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अनुभूति में राम अधीर की रचनाएँ-

नए गीतों में-
आग डूबी रात को
जब मुझे संदेह की कुछ सीढ़िया
जो कलाई पर बँधा है

मैं तो किसी नीम की छाया

गीतों में-
दूरी लगी
नदी से सामना

 

 

 

जो कलाई पर बँधा है

जो कलाई पर बंधा है, आज रक्षा-सूत्र मेरी
मुझ अकिंचन के लिए यह बहिन की सद्भावना है।

भाल पर मेरे तिलक जो
कुमकुमी तुमने किया है।
हो रहा अनुभव कि अक्षत
ने मुझे अक्षत किया है।
साँतिए मुझको निमंत्रित कर यहाँ लाते रहे हैं
यह तुम्हारी स्नेह-मय, कल्याणमय शुभकामना है।

है तुम्हें आषीष तुम
खिलती रहोगी, पूर्णिमा सी।
और घर-परिवार से
मिलती रहोगी चंद्रिमा सी।
मैं तुम्हें कुछ दे सकूँ सक्षम नहीं हूं,बहिन मेरी
कल यही साकार होगा, आज जो उद्भावना है।

जब मने त्यौहार मेरे
नाम से दीपक जलाना।
और उसकी रश्मियों के
साथ तुम भी झिलमिलाना।
इस अगोचर-पंथ में बस तुम मेरा सबंल रहोगी,
क्योंकि मेरे टूट जाने की प्रबल संभावना है।

२९ अगस्त २०११

 

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