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अनुभूति में डॉ. राकेश चक्र की रचनाएँ-

गीतों में-
अद्भुत संसार
आह्लाद कहाँ है
अविराम सफर
एक गुलाब खिला
जनतंत्र

 

एक गुलाब खिला

एक गुलाब खिला आँगन में
बही हर तरफ रस की धार
लगा कि जैसे भरा किसी ने
हो सुख-सौरभ का भंडार

भीनी-भीनी खुशबू से तन-
मन हर्षित है
आँगन का हर कोना अब
होता सुरभित है

परमारथ हित झुका यहाँ जो
जीत लिया उसने संसार

हर मद लोभी उस पर आता
रस पी जाता
जो रस पीता, वही स्वयं पर
है इठलाता

भौंरे-तितली चाहे जो हों
करता है सबका उपकार

इसने हर बलिदानी का ही
साथ दिया है
दिया पराग, स्वयं काँटों का
ज़हर पिया है

छोटे और बड़े सबका ही
बनता रोज़ गले का हार

ये गुलाब ही बच्चों को
करता आकर्षित
सब जहान की खुशियाँ इसमें
रहीं समाहित

रंग-बिरंगा यह गुलाब ही
झूले पवन लचीली डार

१ अक्तूबर २०१६

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