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अनुभूति में राजेश कुमार श्रीवास्तव की रचनाएँ-

गीतों में-
अभिव्यक्ति की सीमाएँ
एक नदी है मेरे भीतर

दर्द देवयानी के
बिखरे छंद जिंदगी के
मन के भीतर युद्ध

 

एक नदी है मेरे भीतर

बहती है एक नदी मेरे भीतर।

मन के ही
मौसम के अनुकूल
तरल करती है दृगों के कूल
यह नदी है अजस्र तरलता की
भीतर छिपी
दमित सरलता की
कैसी ये त्रासदी है मेरे भीतर।

एक
युधिष्ठिर है एक दुर्योधन
दो  हिस्सों  में बँटा है ये मन
जब  भी  यह  दुर्योधन  बचा  है
उसने बस
कुचक्र ही रचा है
नग्न है द्रौपदी मेरे भीतर।

कुछ भी
नहीं किसी से कहती है
यह नदी बस चुपचाप बहती है
हर  बार  के  वहशी  जुनून  में
सनी है यह
अपने ही खून में
आहत है एक सदी मेरे भीतर।

११ जून २०१२

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