अनुभूति में
राजेश कुमार
श्रीवास्तव की रचनाएँ-
गीतों में-
अभिव्यक्ति की सीमाएँ
एक नदी है मेरे भीतर
दर्द देवयानी के
बिखरे छंद जिंदगी के
मन के
भीतर युद्ध
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अभिव्यक्ति की सीमाएँ
अभिव्यक्त न हो सका दर्द जो
कैसे कहूँ मन में नहीं था वो
अभिव्यक्ति की
भी अपनी सीमाएँ हैं।
कभी युधिष्ठिर है तो कभी दुर्योधन
इच्छाओं का कुरुक्षेत्र है ये मन
जो महाभारत है अपने आप से
मैं सम्बद्ध हूँ उस वार्तालाप से
काँच का हृदय है,
पत्थर की शिलाएँ हैं।
कच-प्रण है, कभी देवयानी हठ है
ये पागल मन जाने कैसा मठ है
आँसू पीता है दर्द जीता है
हृदय भावों की भागवतगीता है
कृष्ण-समाधान,
पार्थ शंकाएं हैं।
जब कभी मैं अतिशय दर्द ढोता हूँ
सच मानिए व्यक्त नहीं होता हूँ
सर्वदा बस औरों को बाँटी हैं
मैंने जब भी मुस्कानें छाँटी हैं
एक हनुमन्त हैं,
सैंकड़ों सुरसाएँ हैं।
११ जून २०१२
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