अनुभूति
में
राधेश्याम बंधु की
रचनाएँ-
नए गीतों में-
मौन को उत्सव बनाओ
यादों की खुशबू
यादों की निशिगंधा
ये सफेदपोश बादल
रिश्तों का अहसास
गीतों में-
क्यों नदियाँ चुप हैं
कजरारे बादल
जेठ की तपती दोपहरी में
धान रोपते हाथ
धैर्य का कपोत
निष्ठुर बादल
प्यासी नदी
बहुत घुटन है
भारत क्यों प्यासा
शब्दों के पंख
संकलन में-
रूप बादल हुआ
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यादों की खुशबू
धूप बनो या
छाँव बनो, हम तुम्हें खोज लेंगे,
यादों की खुशबू
से तेरा पता पूछ लेंगे।
कभी चाँदनी बन सागर की
लहरों संग तिरते,
कभी मेघ से बातें करते
इन्द्रधनुष रचते।
सिन्धु बनो या
मेघ बनो, हम तुम्हें खोज लेंगे।
कभी पलाशों के उत्सव में
कोकिल बन गाते,
कभी जुही, गुलनार, केतकी
के संग इठलाते।
रंग बनो या
गंध बनो हम तुम्हें खोज लेंगे।
जहां चाह है वहां राह है
जग में क्या मुश्किल ?
जिसके संग मेहनत का मौसम
सजी वहीं महपिफल।
प्यास बनो या
तृप्ति बनो, हम तुम्हें खोज लेंगे,
२१ नवंबर २०११
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