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अनुभूति में राधेश्याम बंधु की
रचनाएँ-

नए गीतों में-
मौन को उत्सव बनाओ
यादों की खुशबू
यादों की निशिगंधा
ये सफेदपोश बादल
रिश्तों का अहसास

गीतों में-
क्यों नदियाँ चुप हैं
कजरारे बादल
जेठ की तपती दोपहरी में
धान रोपते हाथ
धैर्य का कपोत
निष्ठुर बादल
प्यासी नदी
बहुत घुटन है
भारत क्यों प्यासा
शब्दों के पंख

संकलन में-
रूप बादल हुआ

 

जेठ की तपती दुपहरी में

जेठ की तपती
दुपहरी में, प्यार की टहनी झुलसती है,
घूँटभर जल के लिए
कबसे, प्यास नंगे पाँव चलती है।

गर्म लू आतंकवादी-सी
घोसलों के प्राण है हरती,
एक छोटी-सी मजूरी में
भूख भी अब आग-सी लगती।
चिलचिलाती धूप में
फिर भी, ज़िन्दगी नित बस पकड़ती है।

नदी गुमसुम, घाट हैं प्यासे
टोंटियाँ जलहीन हैं सोतीं,
कुर्सियाँ हैं नशे में खोयी,
झुग्गियाँ पानी बिना रोतीं।
सूखतीं हैं रोज़ ही
फसलें, फाइलों में नहर खुदती है।

रोज़ मुन्ना पिता से कहता,
दूध के बदले शहर से नीर ही लाना,
गाँव का जल हो गया गंदला,
हो सके तो एक मीठा कूप खुदवाना।
आज पानी भी बिकाऊ
है, अब न नदिया प्यास हरती है।

१६ अप्रैल २००६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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