अनुभूति
में
राधेश्याम बंधु की
रचनाएँ-
नए गीतों में-
मौन को उत्सव बनाओ
यादों की खुशबू
यादों की निशिगंधा
ये सफेदपोश बादल
रिश्तों का अहसास
गीतों में-
क्यों नदियाँ चुप हैं
कजरारे बादल
जेठ की तपती दोपहरी में
धान रोपते हाथ
धैर्य का कपोत
निष्ठुर बादल
प्यासी नदी
बहुत घुटन है
भारत क्यों प्यासा
शब्दों के पंख
संकलन में-
रूप बादल हुआ
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रिश्तों का अहसास
रूठा ही रहता
क्यों प्यासी धरती से आकाश?
चलो बचा लें महुआ
वाले, रिश्तों का अहसास।
पत्थर के शहरी जंगल में
विहग नहीं आते अब,
बारूदी विस्फोट देख बादल
भी डर जाते अब।
रोज हादसों में
लुटता क्यों , सपनों का विश्वास ?
घीसू के आँसू की चर्चा
भाषण तो करते हैं ,
पर गरीब गेंदे के दुख से
दूर - दूर रहते हैं ।
सूनी टोंटी की
कतार में, कबसे खड़ी है प्यास ?
भूमण्डलीकरण ने छीनी
घर-घर की हरियाली,
विज्ञापन ने किया निर्वसन
यौवन की खुशहाली ।
रोज लुट रहा
झुनिया का तन अम्मा की अरदास ?
चलो बचालें महुआ
वाले रिश्तों का अहसास ।
२१ नवंबर २०११
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