अनुभूति
में
राधेश्याम बंधु की
रचनाएँ-
नए गीतों में-
मौन को उत्सव बनाओ
यादों की खुशबू
यादों की निशिगंधा
ये सफेदपोश बादल
रिश्तों का अहसास
गीतों में-
क्यों नदियाँ चुप हैं
कजरारे बादल
जेठ की तपती दोपहरी में
धान रोपते हाथ
धैर्य का कपोत
निष्ठुर बादल
प्यासी नदी
बहुत घुटन है
भारत क्यों प्यासा
शब्दों के पंख
संकलन में-
रूप बादल हुआ
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मौन को उत्सव बनाओ
मौन को
उत्सव बनाओ
दर्द को जीना सिखाओ
अब किसी भी
जंग से
डरती नहीं है जिन्दगी
आँधियों से जो लड़ा है
वही तो हिमगिरि बना है
धूप में जो भी तपा है
गुलमुहर सा
वह खिला है
दर्द को दर्पन बनाओ
धैर्य को जीना सिखाओ
अब किसी भी
घुटन में
घुटती नहीं है जिन्दगी
जिन्दगी जो हल चलाती
वही तो मधुमास लाती
मरुथलों की
गली में भी
तृप्ति के है गीत गाती
प्यास को बादल बनाओ
प्यार को खिलना सिखओ
अब किसी भी
हार से
डरती नहीं है जिन्दगी
स्वेद की जब नदी गाती
प्यार की फसलें उगाती
एक मुठ्ठी
धान से भी
झोपड़ी है गुनगुनाती
हाथ को हथियार कर लो
पाँव को रपफतार कर लो
अब किसी भी
जुल्म से
झुकती नहीं है जिन्दगी
२१ नवंबर २०११
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