अनुभूति में
पुष्पेन्द्र शरण पुष्प की रचनाएँ-
गीतों में-
अर्थ लगाकर
आज हवाओं का
जबसे मैंने होश संभाला
जीवन में
बहके कदमों से जंगल में
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जीवन में
जीवन में इन
घटनाओं का खेल निराला है।
पता नहीं पल भर में कब क्या होने वाला है।
अपशकुनों के ये कैसे हैं नहले पे दहले।
छींक दिया तुमने क्यों मेरे जाने से पहले।
एक छींक ने शंकाओं की जेल में डाला है।
जीवन में इन घटनाओं का खेल निराला है।
पंडित जी को बड़े काम से जाना था दिल्ली।
सगुन बनाकर निकले रस्ता काट गई बिल्ली।
होनी और अनहोनी का ये मेल निराला है।
जीवन में इन घटनाओं का खेल निराला है।
बेचारे कुत्ते ने अच्छे कान फड़फड़ाए।
जाने क्या हो जाएगा तुम ऐसे घबराए।
लाठी लेकर तुमने इसका तेल निकाला है।
जीवन में इन घटनाओं का खेल निराला है।
घर से निकल राह में पड़ जाए खाली मटका।
कंडे की डलिया से रहता है भारी खटका।
ये तो स्र्ढ़ि परंपरा का मक्कड़ जाला है।
जीवन में इन घटनाओं का खेल निराला है।
कुछ तो होकर ही रहता जब आंख फड़कती है।
हो जाता है मधुर मिलन या खूब खटकती है।
जो होना है होगा इसको किसने टाला है।
जीवन में इन घटनाओं का खेल निराला है।
१६ नवंबर २००५
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